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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत

गणना-शास्त्र से हमें ज्ञात होता है कि चालीस प्रतिशत हमारी चिन्ताएँ ऐसी वस्तुओंके सम्बन्धमें होती हैं, जो कभी घटित नहीं होतीं। तीस प्रतिशत ऐसी वस्तुओंके विषयमें होती है, जिनके सम्बन्धमें कुछ किया ही नहीं जा सकता और बाईस प्रतिशत ऐसी होती है, जो कि क्षुद्र और अनावश्यक होती है। जिस समय हम अपनेको इन मूर्खतापूर्ण चिन्ताओंमें उलझा लेते है, उस समय क्या हम ऐसे अधिक महत्त्वपूर्ण और जीवनमंि उत्कर्ष उत्पन्न करनेवाले विषयोंकी उपेक्षा नहीं करते? जिनपर हमें गम्मीरतापूर्वक विचार करना चाहिये। चिन्ता हमारे बोझको भारी बना देती है, हलका करनेमें तनिक भी सहायता नहीं करती।

मनुष्य भार उठानेमें नहीं मरता, अपनी शक्तिसे अधिक भार वहन करनेसे वह मृत्युको प्राप्त होता है। प्रत्येक व्यक्ति मरनेसे पूर्व निराशावादी-सा हो जाता है। कारण, वह अनेक प्रकारकी जिम्मेदारियाँ और चिन्ताएँ अपने आन्तरिक मनपर महसूस करता है। मनुष्यका बाह्य मन तो संसारकी जिम्मेदारियोंको निभानेमें लगा रहता है; आन्तरिक मन उनसे मुक्ति प्राप्त करनेके लिये सतत प्रयत्नशील रहता है।

जिम्मेदारियाँ और चिन्ताएँ धीरे-धीरे बढ़ती हैं। यदि आप बच्चे है तो आपकी जिम्मेदारी आपके माता-पितापर है। यदि आप होश सँभालते है तो धीरे-धीरे उत्तरदायित्व का भार अनुभव करते है। आप देखते है कि आपके माता-पिता निर्धन है। अर्थाभावका पर्वत आपपर पड़ा है। आप भी उसमें पिस रहे है! आप देखते है कि आपकी माता, पिता, भाई या कोई कुटुम्बी बीमार रहता है। आपका हृदय सहानुभूति से भर जाता है। आप उनके कष्टोंको दूर करना चाहते है। एक नयी जिम्मेदारी आपपर सवार हो जाती है।

विवाह जिम्मेदारियों का पुलन्दा है। यह चिन्ताकी पहली रेखा है। विवाहका अभिप्राय है एक दूसरे व्यक्तिका बोझ अपने ऊपर सँभालना। यह आयुपर्यन्त आपपर बना रहनेवाला है। यदि पत्नी मूर्ख, अशिष्ट, अशिक्षित या कलहप्रिय है तो जिम्मेदारीके साथ एक नयी चिन्ता आपके ऊपर छायी रहती है।

संतानकी वृद्धि नयी-नयी जिम्मेदारियों आपपर लादती जाती है। प्रत्येक संतान आपके ऊपर असंख्य छोटी-बड़ी जिम्मेदारियाँ लादती जाती है। आप यदि कई पुत्रियोंके पिता है तो उनकी शिक्षा तथा विवाह की असंख्य चिन्ताएँ आपपर चढ़ी रहती है। यदि आप किसी सम्बन्धी का बालक घरमें रखते है तो एक नयी जिम्मेदारी मोल लेते है। इसी प्रकार घरमें मवेशी पालना, कुत्ता, बिल्ली, तोता, मैंना या और कोई पक्षी पालना आपके अन्तर्मनके भारकी वृद्धि करना है। फैशन, टीप-टाप, मोटर, घोड़ागाड़ी, आपमें अधिक दिखानेकी आदत क्रमशः चिन्ताओंकी वृद्धि किया करते हैं।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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